कानपुर। कहा जाता हैं महिलाओं के हाथों में वो बरकत होती है जो मकानों को घर बना देती हैं। कानपुर महानगर में तो महिलाओं ने सरकारी भवनों को भी सजा-संवार कर रहने योग्य बसेरा बना दिया है। हम बात कर रहे हैं सरकारी आश्रय गृहों की। महानगर में नगर निगम द्वारा संचालित दो दर्जन से अधिक आश्रय गृहों, यानी रैन बसेरों में से केवल 3 ही संचालन के लिए महिलाओं को दिए गए हैं। लेकिन इन तीन महिलाओं ने साबित कर दिया कि वो वाकई दो से तीन माले की रैन बसेरों की इमारतों की छटा और फिजा बदलने में सक्षम हैं।
शहर के बीचों बीच, जोन 4 में चुन्नीगंज इंटरस्टेट बस अड्डे के सामने स्थित तीन माले के सरकारी रैन बसेरा में जनता ने यही बड़ा बदलाव देखा। बस अड्डे के आसपास के दुकानदारों, इलाकाई लोगों आदि का कहना है कि जबसे इस रैन बसेरा का चार्ज एक महिला को दिया गया यहां की फिजा ही बदल गई है। चाय का होटल चलाने वाले लखनऊ निवासी सुनील तिवारी कहते हैं पहले जहां चुन्नीगंज रैन बसेरा में शराबियों और अराजकतत्वों के डेरा जमा लेने की शिकायतें मिलती थीं, अब वहीं हर निराश्रित चुन्नीगंज रैन बसेरा में रात में सुरक्षित महसूस करता है। अब ना सामान चोरी का डर है और ना ही गंदे गद्दे, चादरों और लिहाफ़ों की दिक्कत है। शहर में रोजगार करने वाले बनारस निवासी अमर कुमार और इलेक्ट्रिशियन फैजान अली कहते हैं कि काम से लौटते पर देर हो जाने के चलते अक्सर उनको रात में रैन बसेरा में रुकना पड़ता था। चोरी के डर से रात में औजारों को बिस्तर पर साथ लेकर सोते थे। लेकिन अब उसी रैन बसेरा में घर जैसा आराम, सुकून और सुरक्षा महसूस होती है। वहां की संचालिका द्वारा साफ सफाई से लेकर सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगवा देने, शराबियों, अराजकतत्वों और आवारा जानवरों को अंदर घुसने से रोकने के पुख्ता इंतजाम कर दिए जाने से सब सुरक्षित हैं। रैन बसेरा के सामने दशकों से नारायण स्वीट्स के नाम से दुकान चलाने वाले 'ठाकुर अंकल' कहते हैं कि रैन बसेरा में अब सुरक्षा और सुकून है। नगर निगम बड़े संख्या में महिलाओं को रैन बसेरे हैंडओवर करे तो बेहतर है। चुन्नीगंज रैन बसेरा की संचालिका अनीता त्रिपाठी कहती हैं कि रैन बसेरे में रुकने वालों और उनके साज़ो-सामान के सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी है। इसलिए साफ-सफाई के साथ ही सुरक्षा उनकी प्राथमिकता है। अनीता त्रिपाठी के अनुसार आश्रय गृह में इस काम में वो जो कुछ कर सकीं, उसमें कानपुर की मेयर प्रमिला पांडेय का बड़ा सहयोग है। महिला होने के नाते उनका सहयोग हमेशा रहता है। रंग-रोगन से लेकर संसाधन जुटाने और साजसज्जा तक में नगर निगम अधिकारियों का बड़ा सहयोग रहा।
वहीं कल्याणपुर और सेंट्रल स्टेशन से सटे सुतरखाना आश्रय गृह की संचालिकाओं ने भी बेहतरीन मैनेजमेंट का उदाहरण पेश किया है। जोन 5 स्थित कल्याणपुर रैन बसेरा संचालिका अनीता भदौरिया कहती हैं कि महिला होकर जनता के बीच काम करते हुए गर्व की अनुभूति होती है। इस बात की संतुष्टि होती है कि प्रशानिक सहयोग से गरीबों के हित में कुछ अर्थपूर्ण कार्य कर रहे हैं। जोन 1 स्थित सूत्रखाना आश्रय गृह की संचालिका संध्या सिंह कहती हैं कि संचालन में प्रयास करती हैं की सरकारी गाइडलाइन को पूरी तरह फॉलो करें। अगर किसी रुकने वाले के पास आधार कार्ड या अन्य पहचान पत्र नहीं है तो उसका फोटो खींच कर रिकॉर्ड रखते हैं। सर्दियों में साफ बिस्तर, कंबल और लिहाफ आदि रुकने वालों को मिले, यही कोशिश रहती है। संध्या भी कहती हैं कि गरीबों और जरूरतमंदों को रुकने सोने का सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराने का ये काम जीवन में एक उद्देश्य है।
शराबियों और गदाईयों को काबू करना मुश्किल!
विगत 6-7 वर्षों से रैन बसेरों का संचालन कर रहीं महिलाओं की दो कॉमन समस्याएं है। वो हैं इलाकाई अराजक तत्व और नशेड़ी, जो जबरन रैन बसेरे में घुसकर ना सिर्फ गंदगी फैलाते हैं, बल्कि दूसरों के लिए खतरा भी पैदा करते हैं। उनको किसी तरह अपने केयरटेकरों के साथ मिलकर समझा कर वापस भेजते हैं। वहीं सरकार के निर्देश हैं कि सर्दी में कोई भी सड़कों पर ना सोए। लेकिन भिखारी और गदाई किसी भी तरह रैन बसेरा में अंदर रुकने को तैयार नहीं होते। क्योंकि बाहर सड़क पर सोने से उनको रोजाना फ्री के कंबल और ढेरों ढेरों रुपए दान या भीख में मिल जाते हैं। ऐसे में भिखारियों को सड़क से किसी तरह रैन बसेरा में पकड़ कर भी लाएं तो एक दिन से अधिक रुकते नहीं। अंदर बाकियों के लिए साफ सफाई की समस्या उत्पन्न करते हैं।